Jean Piaget Theory In Hindi :- दोस्तों आपने कभी ना कभी तो Jean Piaget का नाम अवश्य सुना होगा और हो सकता है, कि उनके द्वारा दिए गए theory को भी आप पढ़े होंगे।
मगर कई सारे ऐसे लोग हैं, जो Jean Piaget के बारे में अभी नहीं जानते हैं और इनके theory के बारे में भी नहीं जानते हैं और वह जानना चाहते हैं, कि आखिर Jean Piaget ने किस चीज़ का theory दिया था।
तो हम आपको इस लेख में Jean Piaget के द्वारा दिए गए theory को Step By Step करके बताएँगे, तो आप हमारे इस लेख के साथ अंत तक बने रहिए।
Jean Piaget Theory क्या है ? ( Jean Piaget Theory in Hindi )
Piaget Theory को हम Piaget का सज्ञानात्मक विकास भी कहते हैं। Piaget एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे। इनका सिद्धांत बालक के मानसिक विकास को दर्शाता है।
यह सिद्धांत हमें बताता है, कि जब कोई बालक पैदा होता है, तो वह सज्ञानात्मक संरचना के साथ पैदा होता है और जब वह बालक 14 से 15 वर्ष का हो जाता है, तो उसके अंदर पूर्ण रूप से सज्ञानात्मक विकास हो जाता है।
इसलिए Piaget ने बताया है कि बच्चे का सज्ञानात्मक विकास एक क्रमबद्ध तरीके से होना चाहिए। Piaget ने बताया है कि बच्चे भी उतना ही सोचते हैं जितना एक वयस्क व्यक्ति सोचता है केवल बच्चों की सोच का प्रकार अलग होता है।
Piaget Theory के चार कारक ( 4 Elements of Piaget Theory )
Piaget के सज्ञानात्मक विकास में Piaget ने चार कारक बताएं हैं जो इस प्रकार हैं :-
1. परिपक्वता ( Maturation )
Piaget कहते हैं, कि जब तक कोई बालक परिपक्व नहीं होता तब तक हम उससे कोई भी परिपक्वता से संबंधित चीजें नहीं सिखा सकते हैं। इसलिए बालक स्तर के आधार पर परिपक्व बनता है।
जैसे- जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है, वह अलग-अलग प्रकार की चीजें सीखते जाता है और 14 से 15 वर्ष की उम्र में परिपक्व बनता है। Piaget Theory कहती है कि किसी भी बच्चे के सज्ञानात्मक विकास पर वंशागति का प्रभाव भी जरूर पड़ता है।
2. अनुभव ( Experience )
Piaget Theory के इस कारक में बताया गया है कि बच्चा activity करके नई-नई चीजें सीखता है। जैसे बालक सर्वप्रथम किसी गतिविधि को करता हैं और उस गतिविधि से बालक को कुछ अनुभव प्राप्त होता है और वह बालक उस अनुभव द्वारा समझदार बनता है।
3. सामाजिक संपर्क ( Social Interaction )
कई लोग ऐसा सोचते हैं कि Piaget Theory में सामाजिक संपर्क की बात नहीं की गई है। लेकिन Piaget ने अपने सिद्धांत में यह बताया है, कि यदि बालक समाज के संपर्क में नहीं आता तो उसे सामाजिक अनुभव प्राप्त नहीं होता है और वह परिपक्व नहीं बन पाता।
कोई भी बालक सामाजिक संपर्क में आकर नए अनुभव प्राप्त करता है और परिपक्व बनता है।
4. संतुलन ( Equilibration )
Piaget अपने सिद्धांत में कहते है की बच्चे अपने सीखने की अवस्था में काफी संतुलन बना कर रखते हैं, जैसे उन्हें किसी चीज से संबंधित शंका होती है, तो उसकी Clarity के लिए वह प्रयास करते हैं। जिससे कि उनकी समझ सही ढंग से विकसित हो पाती है।
Piaget Theory के चार चरण ( Stages of Piaget Theory )
Jean Piaget ने अपने सिद्धांत में 4 चरणों की बात की है, जिसका उपयोग करके किसी भी बच्चे का सज्ञानात्मक विकास 14 से 15 वर्ष की आयु में किया जा सकता है। Piaget के इन चार चरणों को हम SPCF कहते हैं जो इस प्रकार है :-
1. इंद्रिय गामक अवस्था ( Sensorimotor Stage )
- यह अवस्था 0 से 2 वर्ष के बच्चे के लिए होती है।
- इस अवस्था में कोई भी बच्चा अपने आंखों से देखकर, कानों से सुन कर, किसी वस्तु को हाथों से छूकर या सूंघ कर अनुभव प्राप्त करता है और सीखता है। इस अवस्था में बच्चों के इंद्रियों द्वारा उनकी समझ विकसित होती है।
- इस अवस्था में बच्चों में वस्तु स्थायित्व की भी समझ विकसित होती है। बच्चों की स्मृति इस अवस्था में विकसित होती है जिससे कि यदि हम बच्चों से किसी वस्तु को दूर हटा देते हैं तो वह बच्चा उस वस्तु के लिए रोने लगता है।
- इस अवस्था में बच्चा किसी दूसरे व्यक्ति की नकल भी करने लगता है और उससे भी अनुभव प्राप्त करके सीखता है।
- इंद्रिय गामक अवस्था में बच्चे जो भी प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं उनके लिए वही सही चीज होती है और वह उन्हीं को देखकर अपनी समझ विकसित करते हैं।
2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( Pre-Operational Stage )
- यह अवस्था 2 से 7 वर्ष के बच्चों के लिए होती है।
- इस अवस्था में बच्चों के अंदर भाषा की समझ विकसित होती है और वह तर्क वितर्क करने में भी सक्षम बनते हैं।
- इस अवस्था में बच्चे खुद को ही केंद्र मानते हैं और समझते हैं, कि जैसा वह सोच रहे हैं, पूरी दुनिया वैसे ही चल रही है।
- इस अवस्था में बच्चे सहज ज्ञान युक्त होते हैं। यानी कि इस अवस्था में बच्चों को यह लगता है, कि उन्हें उस चीज के बारे में समझ है लेकिन वास्तविक रूप में उन्हें उस बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।
- इस अवस्था में बच्चों में परिवर्तन का गुण होता है। इस अवस्था में बच्चे केंद्रित तो होते हैं, लेकिन विकेंद्रित नहीं हो पाते।
3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( Concrete Operational Stage )
- यह अवस्था 7- 11 वर्ष के बच्चों में होती है।
- इस अवस्था में बच्चे मूर्त वस्तुओं, जिन्हे देखा या छुआ जा सकता है, के बारे में Logic लगाने लगते हैं। और उन वस्तुओं से संबंधित तर्क भी देने लगते हैं।
- इस अवस्था में Piaget ने बच्चों के सीखने के लिए तीन अलग प्रक्रियाएं बताई हैं।
1. संरक्षण (Conservation)
2. वर्गीकरण (Classification)
3. क्रमबधता (seriation) - इन तीन अलग प्रक्रियाओं में बच्चे वस्तुओं के आकार, रंग- रूप आदि को समझने लगते हैं और इसके आधार पर वह वस्तुओं का वर्गीकरण भी कर पाते हैं, साथ ही वस्तु को क्रमबद्ध तरीके से रख भी पाते हैं।
- इस अवस्था में बच्चों में विकेंद्रीकरण की क्षमता भी आ जाती है।
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था ( Formal Operational Stage )
- यह अवस्था 11-14 वर्ष के बच्चों में होती हैं।
- इस अवस्था में बच्चे मूर्त के साथ-साथ अमूर्त चीजों के बारे में भी सोचने लगते हैं।
- इस अवस्था में बच्चों में भावनाएं भी आने लगती है और बच्चों में दूसरों के प्रति अलग-अलग तरह की भावनाएं पैदा हो जाती हैं।
- औपचारिक अवस्था में बच्चे अलग-अलग चीजों के बारे में imagination भी करने लगते हैं और अपने सोचने की क्षमता को विकसित करते हैं।
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( Conclusion, निष्कर्ष )
उम्मीद करता हूं, कि आप को मेरा यह लेख बेहद पसंद आया होगा और आप इस लेख के मदद से Jean Piaget theory in Hindi, के बारे में जानकारी प्राप्त कर चुके होंगे।
हमने इस लेख में सरल से सरल भाषा का उपयोग करके आपको Jean Piaget theory in Hindi , से जुड़ी हर एक जानकारी के बारे में बताने की कोशिश की है।
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